किसानों को आधुनिकता की जरूरत

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  • anil
  • March 30, 2022

किसानों को आधुनिकता की जरूरत

इस बात को तो हम सभी जानते हैं कि स्मार्ट वर्क हार्ड वर्क से बेहतर है और स्मार्ट वर्क ही किसान को आधुनिक बनाता है ।

यह कुछ तरीके हैं जिन्हें अपनाने से किसान का काम आसान होता है और बचत भी होती है।

बूंद – बूंद सिंचाई (ड्रिप इरिगेशन):

इस तरीके से पानी और खाद दोनों की बचत होती है।

अभी क्या किया जाता है कि पूरा पानी खेत में छोड़ दिया जाता है , जिससे बहुत सारा पानी भी बर्बाद होता है और सभी पौधों की जड़ों तक पानी भी नहीं पहुंच पाता। बूंद – बूंद सिंचाई से सभी पौधों को बराबर पानी मिलता है और पानी सीधा जड़ों को दिया जाता है जिससे खरपतवार कम उगता है इससे फसल भी अच्छी होती है और फसल की गुणवत्ता भी अच्छी होती है।

बूंद – बूंद सिंचाई में खेतों में एक ड्रम में पानी भरकर मोटर के जरिए पाइपों में पहुंचाया जाता है और पाइप में पौधों की दूरी के हिसाब से छेद किए जाते हैं जिससे पानी सीधा पौधों की जड़ों में जितना पर्याप्त उतना ही पहुंचाया जाता है। यही नहीं उस ड्रम में काई जमने का

भी कोई डर नहीं होता । उस ड्रामे सिर्फ साफ पानी ही जाता है क्योंकि उसमें रेत को छानने के लिए फिल्टर लगा होता है। इसके बाद यह पानी खाद पंप में आता है और इसमें खाद मिला दी जाती है। इसके बाद पानी स्क्रीन फिल्टर में आता है यह फिल्टर पानी में घुली हुई अशुद्धियों को छान देता है , फिर यह पानी पाइपों में जाता है। यह पर ड्रॉप – मोर क्रॉप के सिद्धांत पर काम करता है।

मल्चिंग:

मल्चिंग दो प्रकार से की जाती है : एक में जैविक चीजों का प्रयोग किया जाता है जैसे भूसा , सूखी घास , गन्ने की पत्तियां , फसल अवशेष आदि इसके प्रयोग से जमीन पर एक परत बिछा दी जाती है और फसल को ढक दिया जाता है फिर ड्रिप सिस्टम से सिंचाई की जाती है।

दूसरे तरीके में प्लास्टिक शीट से पौधों को ढक दिया जाता है और फिर ड्रिप सिस्टम से सिंचाई की जाती है इसमें मल्च शीट को 4 से 6 इंच जमीन के नीचे गाढ़ देना होता है जिससे मल्चशीट फटे ना और पानी से शीट खराब ना हो।

मल्चिंग का सबसे बड़ा फायदा होता है कि इससे खरपतवार पैदा नहीं होती और उससे यह होता है कि कम से कम उर्वरक व कीटनाशकों का इस्तेमाल करना पड़ता है क्योंकि खरपतवार ही नहीं होगा तो उसके कारण मच्छर भी नहीं होंगे। इससे खर्चा भी कम होता है और पौधों में नमी ज्यादा दिन तक बनी रहती है जिससे पानी की कम लागत होती है । इसे लगाना भी बहुत आसान है और खर्चा भी कम होता है । इससे जमीन का ताप भी नियंत्रण में रहता है।

सौर ऊर्जा कृषि पंप :

जब किसान खेत में बोर लगाने का सोचता है तो सबसे बड़ी समस्या आती है कनेक्शन करके पानी बाहर कैसे लाया जाए क्योंकि बिजली या इंजन से तो यह बहुत महंगा पड़ता  है । पर सौर ऊर्जा से सिर्फ एक बार ही खर्चा लगाना पड़ता है यह बार-बार महंगा नहीं पड़ता जैसे बिजली का बिल बार-बार नहीं भरना पड़ता है। सौर ऊर्जा को चलाना भी बहुत आसान है और इसे खर्चा भी बच जाता है और यही नहीं इससे पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं है , इससे रिमोट एरिया में भी लगाया जा सकता है जहां बिजली का आना संभव नहीं है । सौर ऊर्जा कृषि पंप को एक जगह से दूसरी जगह आसानी से बिना किसी खर्चे के हटाकर लगाया जा सकता है लेकिन ट्रांसफार्मर को हटाने में बहुत खर्चा होता है। इससे उत्पादन क्षमता में भी बढ़ोतरी होती है।

मृदा नमी सेंसर :

यही नहीं आजकल तो लोग अपने खेतों में मृदा नमी सेंसर लगाने लगे हैं । ये मृदा नमी सेंसर मिट्टी में पानी की मात्रा को माप देता है जिससे किसान को यह पता चल जाता है कि कौन सी फसल उस मिट्टी में बेहतर पैदा होगी और यह भी पता चल जाता है कि फसल को कितने और पानी की जरूरत है जिससे पानी और खर्चा दोनों बचते हैं।

यह कुछ ऐसे तरीके हैं जिन्हें अपनाकर किसान अपनी पैदावार भी बढ़ा सकता है और काम में आसानी भी होती है। यह तरीके किसान को आत्मनिर्भर बनाते हैं।