किसानों को जैविक खाद की जरूरत

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  • anil
  • March 28, 2022

किसानों को जैविक खाद की जरूरत

जैविक खाद के कुछ प्रकार हैं:

गोबर खाद

वर्मी खाद

हरी खाद

जैविक खाद मिट्टी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाती और मिट्टी को धीरे – धीरे उपजाऊ बनाती है , इससे हमें भी नुकसान नहीं होता क्योंकि कोई रसायन का उपयोग नहीं किया जाता । यह दीर्घ काल का लाभ देता है जबकि अजैविक खाद सिर्फ कुछ समय के लिए ही फायदा देता है और साथ ही साथ ही नुकसान भी देता है लेकिन जैविक खाद का कोई नुकसान नहीं है और इससे कचरे से निपटने का भी समाधान निकल जाता है जिससे बीमारियां कम पनपती हैं और कम फैलती हैं और यही नहीं इससे किसानों को भी फायदा है क्योंकि इसे डालने के बाद फसल को कम पानी की जरूरत होती है अजैविक खाद के मुकाबले और इससे खर्चा भी बचता है और यही नहीं जो कीट अजैविक खाद से नष्ट हो रहे हैं वह भी बढ़ जाते हैं और जैविक खाद मिट्टी को पोषक तत्वों से भरपूर बना देती है सरकार ने जैविक खाद को बढ़ावा देना शुरू किया है और किसान को जैविक खाद भी उपलब्ध कराई जा रही है।

गोबर की खाद कैसे बनाई जाए और इसके क्या फायदे हैं:

यह गाय , भैंस के गोबर , मूत्र , बचा हुआ चारा आदि का मिश्रण बनाकर एक ड्रम में बंद कर दिए जाते हैं जहां हवा भी न लगे और धूप भी न लगे इससे यह मिश्रण सड़ जाता है और गोबर की खाद बनती है । इसे बनने में लगभग डेढ़ – 2 महीने लग जाते हैं और इसे बनाते समय इस बात का भी ध्यान रखना पड़ता है कि प्रतिदिन इसे दिन में एक बार हिलाया – मिलाया जाए ।इस खाद का प्रभाव मिट्टी पर 2 से 3 वर्ष तक बना रहता है।आज अजैविक खाद पैदावार तो बढ़ा देता है लेकिन मिट्टी में मौजूद अच्छे कीटो को मार डालता है जिससे उपजाऊ मिट्टी बंजर मिट्टी बनने लगती है , उसके गुण खत्म होने लगते हैं।

गोबर की खाद डालने से यह किट बढ़ते हैं जैसे केंचुए आदि जो जमीन को मुलायम बनाते हैं और मिट्टी में सुराख करके उसे उपजाऊ भी बनाते हैं और बारिश आने पर मिट्टी पानी और भी ज्यादा सोखती है पर अजैविक खाद से जमीन ठोस होती है क्योंकि केंचुए मर जाते हैं । केंचुए नहीं होंगे तो पैदावार अपने आप ही कम हो जाएगी।

इस खाद में पोटाश , फास्फोरिक अमल होता है जिससे पौधों में बीज स्वस्थ पैदा होते है तथा बीजों का भार बढ़ना, पौधों में रोग व कीटरोधकता बढ़ती है। पोटाश जड़ों को मजबूत बनाता है एवं सूखने से बचाता है। फसल में कीट व रोग प्रतिरोधकता बढ़ाता है। पौधे को गिरने से बचाता है।

वर्मी खाद:

यह केंचुए से तैयार की जाती है । इसे बनाना ज्यादा मेहनत का काम तो नहीं है पर चौकन्ना रहने की जरूरत है।

इस खाद को बनाने के लिए सबसे पहले एक छायादार जगह देखकर जमीन पर पन्नी बिछाए फिर उस पर गोबर की ढेरियां लगाएं

और उसमें केंचुए छोड़ दें और उसे प्रालि से ढक दें ताकि धूप न लगे क्योंकि केचुओ से धूप सहन नहीं होती और रोज ध्यान से देखकर वापस ढककर पानी देते रहें इससे डेढ़ – 2 महीने में वर्मी खाद तैयार हो जाती है। इसे किसान अपने खेत के लिए भी तैयार कर सकते हैं और बेच भी सकते हैं क्योंकि इसकी मांग बहुत बढ़ गई है। इसका कारण भी कीटनाशक और अजैविक खाद का ज्यादा उपयोग है इसलिए अब लोग वापस जैविक खाद की तरफ स्विच कर रहे हैं । इस खाद से फसल में बीमारियों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है, भूमि की उर्वरता, पिएच, भौतिक दशा, जैविक पदार्थ, लाभदायक जीवाणुओं की संख्या आदी मैं वृद्धि व सुधार होता है।

हरी खाद:

हरी खाद बनाना भी बहुत आसान है जिस खेत को हरी खाद की जरूरत है उसी में पौधे उगाए जाते हैं और फिर जोत दिए जाते हैं जिससे वह गुण मिट्टी में मिल जाते हैं और मिट्टी उपजाऊ बनती है।हरी खाद के लिये बोई गई फसल 55 से 60 दिन बाद जोत कर मिट्टी में मिलाने के लिये तैयार हो जाती है । इससे खरपतवार में कमी आती है और मिट्टी उपजाऊ बनती है। नाइट्रोजन में भी वृद्धि होती है जिससे दाना बनने में मदद मिलती है और प्रोटीन की मात्रा भी बढ़ती है और यही नहीं फसल में भी चमक आ जाती है।

यह सारी खाद एक अकेले किसान को बनाने में तो बहुत मुश्किल होगी और यही काम अगर एक समूह करें तो यह ज्यादा मात्रा में भी बनेगी और आसानी से भी बन जाएगी। एक समूह में किया गया कोई भी काम आसान हो जाता है इसीलिए सरकार ने एफपीओ बनाने का सोचा ताकि सभी किसान एक समूह में बन कर काम करें और काम करने में उन्हें आसानी हो। ज्यादा मात्रा में खाद बनेगी तो उसे बेचा भी जा सकता है जिसके अच्छे दाम भी मिलेंगे क्योंकि वह ज्यादा मात्रा में होगी और इसकी मांग भी है। एफपीओ से जुड़ने के बाद किसानों को एसे बहुत सारे फायदे मिलेंगे जिसका एक फायदा अभी हमने पढ़ा।